"घाट मेरा रामफळ भी ना सै"




कारगिल की लड़ाई के आस-पास की बात । गाम की चौपाड़ में बूढ़े बैठे थे, होक्का सिलगा कै - अर बात चाल पड़ी कारगिल कै ऊपर । उन बूढ़्यां में एक के छोरे का नाम रामफळ था, जो फौज में था ।
रामफळ का बाबू - भाई, पाकिस्तान गैल्यां तै लड़ाई होवै ए होवै ।
दूसरा बूढ़ा - भाई, के कह सकां सां, हो भी सकै सै, ना भी ।
रामफळ का बाबू और हंघा ला कै बोल्या - भाई, लड़ाई तै हो कै रहवैगी, ईब कै कोनी टळै ।
बूढ़े बोल्ले - भाई, इसा सै, ना भी होवै - के बेरा ?
रामफळ का बाबू - भाई, मन्नै बेरा सै, लड़ाई तै होवैगी जरूर ... एक तै यो मुशरर्फ घणा ऊत सै, अर घाट मेरा रामफळ भी ना सै - ईब लड़ाई तै हो कै रहवैगी !!




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