फौजी का हनीमून




फ़ौजी का नया-नया ब्याह होया था । बहू निरी अनपढ थी । गाम मैं अर रिश्तेदारी मैं दस-बारह दिन लिकड ग्ये । बहू नै सारे घर का काम भी सम्भाळ लिया ।
एक दिन फ़ौजी सवेरे-सवेरे आपणी लुगाई तैं बोल्या - चाल, तन्नै हनीमून पै ले चाल्लूं ।
लुगाई बोल्ली - रहण दे, भैंस की सानी भेणी सै, तेरे बाबू की रोटी करणी सै, घणे ऐं काम सैं । तू न्यूं कर अक दादी ने ले ज्या । पड़ी-पड़ी दुखी हो ज्या सै एकली । उसनै कद्दे हनीमून देख्या भी ना होगा !!




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