छोटी बारात




एक बै एक रिश्ता होया - लड़के का बाबू घणा शरीफ था अर छोरी आळा था चालू किस्म का अर कंजूस । वो छोरे के बाबू तैं बोल्या अक चौधरी साहब, आप बारात छोटी ले कै आना (बीस-पच्चीस माणसां की) । लड़के के बाबू नै हां भर ली । जब बारात जाने का टाइम हुआ तो चालीस के करीब आदमी हो गए । लड़के के बाबू नै सोच्या अक दस-पन्द्रह तै ऊपर-तळै चाल जायां करैं, जै मैं इन्हैं टोकूंगा तै मेरा भाईचारा खराब होवैगा, सबनै चालण दे !

छोहरी के बाबू नै देख लिया कि 40 आदमी आ रहे सैं, अर खाना हमनै 20-25 का बना राख्या सै । वो कंजूस तै था ए, उसनै के करया - सारी चीजां में पानी मिलवा दिया (खीर, हलवा, आलू की सब्जी - सब में पानी मिलवा दिया) । ईब जब बरातियां नै खाना खाया, तै उन्हैं स्वाद तै आया ना, अर चुप-चाप फेरों वाली जगह आ-कै बैठ गए ।

फेरे होये पाच्छै जब बारात चालण लाग्गी, तै छोरी के बाबू नै ताना दे कै कहया - "चौधरी साहब, बारात तै छोटी ए ले कै आये आप" । ईब लड़के वाले से बरदास्त ना हुई, वो हाथ जोड़ कै न्यूं बोल्या - "चौधरी साहब, म्हारे गाम में गोबर खाण आळे बस इतणे ऐं आदमी थे" !!




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