"काणी बारात"




शरीर के किसी अंग में कोई दोष हो तो अपना कोई कसूर नहीं होता । पर आँख का दोष ऐसा है जो छुप नहीं सकता, सामने ही नजर आ जाता है । कहावत है कि काणे में एक रग फालतू होती है ।

एक बारात पहुंची बागड़ के एक गांव में । उन बारातियों में तीन आदमी काणे थे । ऐसे लोगों को चाहिये तो यह कि वे पीछे बैठें ताकि सबकी निगाह उनकी तरफ नहीं पड़े । पर फेरे होने के समय वे तीनों डाक्की सबसे आगे बैठ गये - दूल्हे के सामने ।

लड़की वाले चौधरी का नाई वहीं बैठा था, बंदड़े (दूल्हे) को बीजणे से हवा करने के लिए । जब पंडित ने मंत्र पढ़ने शुरू किये तो नाई चौधरी से बोल पड़ा "चौधरी, इस बाहमण ताहीं कह दे अक फेरे तगाजे तैं करवा दे, सारी बारात काणी होती आवै सै – कदे इस बंदड़े का नंबर ना आ-ज्या" !!




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