"फूट-ग्या"




एक बै बारात में भूंडू आंधा चाल्या गया । छात पै जीमणवार होण लाग्गी । घरातियां नै पत्तळ धर दिये सबकै आगै । आंधी आने का आसार था, सो सबकी पत्तळ पै एक-एक पत्थर भी धर दिया ।
भाई, म्हारे भूंडू आंधे नै समझया अक यो लाड्डू चख कै देख । उसनै पत्थर कै जोर लाया, पर वो ना फूट्या तै उसनै सोच्या अक ये लाड्डू तै किमैं बासी-से धर दिये जै फूटते भी कोनी !
छो में आ-कै उसनै पत्थर फेक कै मारा । उसकै साहमी जो दूसरा बाराती बैठ्या था, उसके सिर पै लाग्या जा-कै । उस बाराती नै मारी चिल्ली "अरै, फूट-ग्या!"
म्हारा भूंडू आंधा बोल्या "फूट-ग्या हो तै भाई, आधा मन्नैं भी दे दे" !!




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