“तीन फेरे भतेरे”




एक बै बनिया की छोरी के ब्याह में फेरे करवावण खातिर कोई बाहमण ना मिल्या । जब कित्तै तैं बाहमण का जुगाड़ ना हुया तै छोरी आळे एक जिम्मेदार जाट नै ले आये । जाट नै फेरे शुरु करवा दिये ।
तीन फेरे होण पाच्छै जाट बोल्या - भाइयो, रस्म तै पूरी हो-गी, छोरी की विदा करवाओ ।
छोरे आळे बाराती बोले - जी, फेरे तै सात होया करैं ।
जाट बोल्या - भाई, बात इसी सै, जै (अगर) उसनै रुकणा होगा तै तीन फेरयां में भी कित्तै ना जावै । अर जै इसनै भाजणा ए सै, तै चाहे पच्चीस फेरे करवा ल्यो !!




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