"सारयां का फूफा"




एक बै एक स्कूल में नाटक होया । उस नाटक में एक छोरी नै बूआ का रोल करना पड़-ग्या । फिर यो बूआ का रोल करे पाच्छै सारी क्लास के बाळक उसनै "बूआ-बूआ" कह कै छेड़ण लाग्गे ।
उस छोरी नै दुखी हो कै एक दिन मास्टर ताहीं बता दी अक - जी, ये सारे मन्नै बूआ-बूआ कह कै छेड़ैं सैं ।
मास्टर कै ऊठ्या छो, अर बोल्या - "अरै, खड़े हो ज्याओ जुणसे-जुणसे इसनै बूआ कहैं सैं" ।
सारी क्लास खड़ी हो गई, बस एक छोरा पाच्छै-सी बैठ्या रह-ग्या । मास्टर उस छोरे नैं बोल्या - क्यूं रै, तेरा के चक्कर सै ?
वो छोरा सहज-सी आवाज में बोल्या "जी, ये जुणसे खड़े सैं ना, मैं इन सारयां का फूफा सूँ !!




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