कंजूस बनिया




एक कंजूस बनिया रोजाना नाई से हजामत बनवाया करता था । एक बार उसकी टोपी कहीं खो गई और ढूंढने से भी नहीं मिली । बनिया ने सोचा कि यह तो बड़ा नुकसान हो गया, इस घाटे को कैसे पूरा किया जाये ! फिर उसके दिमाग में एक विचार कौंधा कि कुछ दिन नाई से हजामत बनवाना छोड़ देता हूं, पैसे बच जायेंगे और उन बचे हुए पैसों से नई टोपी खरीद लूंगा ।

कोई दस दिन बाद बनिया ने देखा कि दाढ़ी तो काफी बढ़ गई है । सोचा कि टोपी के पैसे तो पूरे हो ही गये, आज पहले दाढ़ी बनवा लेता हूं और बाद में नई टोपी खरीद लेता हूं ।
जब वो बाजार में हज्जाम (नाई) की दुकान की तरफ जा रहा था तो रास्ते में उसे एक लंबी दाढ़ी वाला सरदार मिला जो उसी तरफ जा रहा था । उसकी लंबी दाढ़ी देखकर बनिया चौंक उठा और सोचने लगा कि इसके साथ भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा जो मेरे साथ हुआ है और यह भी नाई से दाढ़ी मुंडवाने जा रहा होगा ।
सरदार को देखकर बनिया बोल पड़ा – सरदार जी, मेरी तै टोपी ए खोई थी, पर न्यूं लागै सै अक तेरा तै पूरा बिस्तर खो गया !!



एक बनिया था कसूता मूंजी (कंजूस) ।
एक रात अपने छोरां नै बोल्या - आज जो रोटी नहीं खावैगा, उसनै पांच रुपय्ये मिल्लैंगे ।
उसके छोरे राजी हो-गे अर पांच-पांच रुपय्ये ले कै बिना रोटी खाये सो गये ।
तड़कैहें (सुबह) ऊठतीं-हें बनिया नै कही - "ईब रोटी उसनै मिल्लैंगी जो पांच रुपय्ये देगा" !!




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