दूबळधन और इस्सरहेड़ी
झज्जर जिले के बेरी कस्बे से आगे दूबळधन एक काफी बड़ा गांव है । उस गांव का एक जवान चौधरी एक ऊंट पर गेहूं की दो बोरी रखकर रात को कच्चे रास्ते से दिल्ली बार्डर की तरफ चला - नजफगढ की मंडी में बेचने के लिए । सुबह 4 बजे के करीब दिल्ली बार्डर के गांव इस्सरहेड़ी के पास कच्चे रास्ते से पहुंच गया । वहां पुलिस पहले ही छिपी बैठी थी । जब पुलिस वाले पास आये तो चौधरी ने ऊंट को छोड़कर गांव की तरफ दुड़की* लगाई - सोचा कि ये इस्सरहेड़ी भी दूबळधन की तरह बड़ा गांव होगा, इसकी गलियों में गुम हो जाऊंगा और पुलिस के हाथ नहीं आऊंगा ।
इस्सरहेड़ी दरअसल एक छोटा सा गांव है । चौधरी एक गली में घुसा और थोड़ी ही देर में गांव का दूसरा सिरा आ गया । फिर दूसरी गली की तरफ भागा और एक मिनट बाद फिर गांव का दूसरा छोर आ गया । वहां आकर वो रुक गया । जब पुलिस वाले पास आये तो बोला : "ओ भाई, मन्नै बेशक पकड़ ल्यो, पर पहल्यां न्यूं बताओ अक यो गाम बसाया किस अनाड़ी नै - इसतैं तै मेरी एक डाक बी ना उटती" !!
- (दुड़की) - दौड़
- (इसतैं तै मेरी एक डाक बी ना उटती) – इससे तो मेरी एक छलांग भी बर्दाश्त नहीं होती.
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