बाणिया की भैंस




बाणियां के घर मैं चोर बड़-ग्ये पर उनकै थ्याया किम्मैं ना । फिर वे बाहर बगड़ मैं आये तै देख्या कि ऊड़ै लाला-जी की भैंस बंध रही थी । एक बोल्या - अरै, लाला के घर-तैं खाली हाथ उल्टे गये तै बड़ी बेजती हो-ज्यागी, न्यूं करो इस भैंस नैं ऐं ले-चाल्लो, बेच-कै किमैं तै पईसे मिल्लैंगे !
चोर उस भैंस नैं खोल ले-ग्ये अर उस्सै खूटे पै एक झोट्टा बांध-कै चले गए ।
रोज तड़कैहें बखत तैं अंधेरे मैं ऊठ-कै लाला की छोहरी धार काढ्या करती । वा उस दिन-बी ऊठी और थण धोवण खातिर ज्यूकर-ए हाथ लाया, जोर-तैं रूक्का मारा -
ए मा, तावळी आ - भैंस के तै चारूं थण जाम हो रहे सैं, अर एक मोट्टा-सा थण पाक्या पड़्या सै !!




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